-जमात ने विधेयक में ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं को प्रतिनिधित्व देश की रखी मांग

नई दिल्ली। जमात-ए-इस्लामी हिंद का कहना है कि सरकार के जरिए प्रस्तावित महिला आरक्षण विधेयक की बहुत जरूरत है मगर विधेयक में ओबीसी और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को भी आरक्षण दिया जाना चाहिए।

जमात के उपाध्यक्ष प्रो. सलीम इंजीनियर ने कहा कि एक मजबूत लोकतंत्र के लिए सभी समूहों और वर्गों के लिए शक्ति के साझाकरण में प्रतिनिधित्व पाना महत्वपूर्ण है। आजादी मिलने के 75 साल बाद भी संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व काफी निराशाजनक है। उनकी संख्या को एक उचित अनुपात तक लाने का प्रयास किया जाना चाहिए। महिला आरक्षण विधेयक इस दिशा में एक अच्छा कदम है।

उनका कहना है कि दरअसल विधेयक यह काफी पहले आ जाना चाहिए था। अपने वर्तमान स्वरूप में विधेयक का मसौदा ओबीसी महिलाओं और मुस्लिम महिलाओं को बाहर करके भारत जैसे विशाल देश में गंभीर सामाजिक असमानताओं को संबोधित नहीं करता है। हालांकि इस कानून में एससी और एसटी की महिलाओं को शामिल किया गया है, लेकिन इसमें ओबीसी और मुस्लिम समुदाय की महिलाओं को नजरअंदाज किया गया है। विभिन्न रिपोर्ट और अध्ययन रिपोर्ट सुझाव देते हैं कि भारतीय मुसलमानों और खासकर मुस्लिम महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक सूचकांक में काफी कमी है। संसद और राज्य विधानसभाओं में मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व लगातार घट रहा है। यह उनकी जनसंख्या के आकार के अनुपातिक नहीं है।

प्रो. सलीम इंजीनियर ने कहा है कि प्रस्तावित आरक्षण अगली जनगणना के प्रकाशन और उसके बाद परिसीमन अभ्यास के बाद ही लागू होगा। यानी बिल का फायदा 2030 के बाद ही मिल सकेगा। इस प्रस्ताव के समय से प्रकट होता है कि इसे आगामी लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर लाया गया है। इसमें गंभीरता की कमी है। असमानता दूर करने के कई तरीकों में से एक है सकारात्मक कार्रवाई (आरक्षण)। महिला आरक्षण विधेयक में ओबीसी और मुस्लिम महिलाओं को नजरअंदाज करना अन्यायपूर्ण होगा और “सब का साथ, सबका विकास“ की नीति के अनुरूप नहीं होगा।

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