झारखंड में बिजली पर बवाल मचा हुआ है। कोई इसके लिए हेमंत सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहा है तो कोई पूर्व की रघुवर सरकार को बिजली कटौती का कसूरवार मान रहा है। ऐसे में बड़ा सवाल है की झारखंड के साथ धोखा करने वाला कौन है ? कौन है वो जिसकी लापरवाहियों का खामियाजा भुगत रही है यहाँ की मेहनतकश जनता ? किसने झारखंड के लोगो को अँधेरे में रहने पर मजबूर कर दिया है ? क्या डीवीसी का भी इसमें कोई रोल है ? डीवीसी ने ‘पिछले 3 सालो’ {जबतक राज्य में बीजेपी की रघुवर सरकार थी} के बकाया का बोझा नवनिर्मित हेमंत सरकार के माथे पर डाल दिया। फरवरी में कंपनी ने सरकार को अचानक अल्टीमेटम दे दिया की सरकार बकाये का भुगतान करे जो पिछली सरकार ने नहीं किया।


डीवीसी को पिछले तीन सालो तक भुगतान नहीं किये जाने के कारण बिजली का बकाया 4995 करोड़ रुपये हो गया। जिसे चुकाने का दबाव डीवीसी ने हेमंत सरकार पर डाल दिया। हेमंत सरकार ने आने के साथ डीवीसी को दो महीने का ( अपनी सरकार के दो महीने) का बिल चुका दिया जो था 219 करोड़ रुपये था।


डीवीसी ने केंद्र सरकार के इशारे पर जिद कर दी की पूर्व की रघुवर सरकार का हज़ारो करोडो का बकाया भी हेमंत सरकार ही चुकाए अन्यथा राज्य में रेगुलेशन जारी कर लोड शेडिंग की जायेगी। डीवीसी के इस रेगुलेशन का असर 20 फरवरी के बाद से दिखने लगा। राजधानी रांची समेत कई जिलों में बिजली कटौती शुरू हो गयी। डीवीसी को चेतावनी दी गयी की वह केंद्रीय लोक उपक्रम है और बकाया पूर्व की भाजपा सरकार के दौरान का है। राज्य के खजाने की हालत खस्ता होने के बावजूद भी हेमन्त सरकार ने अपने समय के महीने का बिल समय पर चुका दिया गया है। मगर पूर्व की सरकार का बकाया वर्तमान सरकार पर दबाव बनाकर नहीं चुकाया जा सकता है।डीवीसी ने सरकार की सख्ती के बाद भी सात जिलों में रेगुलेशन जारी रखा जिस वजह से आज भी सूबे के कई शहरों में लोड शेडिंग हो रही है। इन जिलों को जरुरत से बहुत कम बिजली मिल रही है।


जानकारी हो की जिस बकाया का बहाना बनाकर डीवीसी ने झारखंड के लोगो को अँधेरे में रखा है। उस बहाने पर भी बात नहीं बनती हैं। क्योकि, अगर बकाया देखा जाए तो ऊर्जा विभाग की वेबसाइट ‘प्राप्ति’ ( पीआरएपीटीआई) के अनुसार झारखंड का बकाया यूपी में बिजली के बकाया का एक चौथाई है। यूपी में बिजली का बकाया 13862 करोड़ है। मगर यूपी में कभी 5 मिनट के लिए भी बिजली नहीं काटी जाती। ना ही वह योगी सरकार पर भुगतान का दबाव बनाया जा रहा है। फिर झारखंड में 4995 करोड़ ( उसमे से 2495 करोड़ रुपये विवादित है जिसपर कोर्ट का फैसला आना बाकी है) के बकाये के लिए 18 घंटे तक बिजली क्यों काट दी जाती है और वो भी तब जब ये बिजली के बकाये पूर्व की रघुवर सरकार की मेहरबानी है। क्या सरकार बदलने के बाद ये केंद्र के बदले की कार्रवाई है? डीवीसी ने झारखंड के साथ सौतेला व्यवहार किया है।

जाहिर है केंद्र सरकार के इशारो पर डीवीसी ने झारखंड में बिजली काटने का काम किया। मगर आज ये जानना बहुत जरूरी है। झारखंड को बिजली के आंसू रुलाने वाली डीवीसी का मुख्यालय भी यहाँ नहीं है। डीवीसी झारखंड से खनिज संसाधनों का पूरा उपयोग करती है, बिजली बनाने के लिए यहाँ की जमीन में फैक्ट्री लगाई, मजदूर यहां के, संसाधन यहाँ का, पानी यहाँ का, लोग झारखंड के विस्थापित हुए, मगर कभी किसी ने डीवीसी को एक शब्द नहीं कहा। झारखंड को अँधेरे में रखकर यूपी बिहार को बिजली देने वाली डीवीसी के मुख्यालय को भी रांची लाने की मांग की गयी,मगर अपने ही घर में गद्दारी कर डीवीसी ने यहाँ के लोगो का विश्वास खो दिया है। डीवीसी और राजनीति के बदले के खेल में पिस चुका आम आदमी आज यही सवाल पूछ रहा है की डीवीसी के पास इस सौतेला व्यवहार करनेके अलावा भी रास्ते थे। केंद्र सरकार चाहती है कि हेमंत सरकार को करो जनता में बदनाम करना चाहती है। भारतीय जनता पार्टी को झारखंड में अपनी राजनीति चमकना, इसलिए जनता को बिजली के नाम पर रुलाने के लिए केंद्र सरकार के इशारे पर बिजली काटी जा रही है।

CDT- The News Mirchi

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