रांची (एजेंसी)। झारखंड की सक्रिय राजनीति से रघुवर दास को किनारा कर भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं। चार दिन के भीतर भाजपा आलाकमान ने दो बड़े फैसले सुनाकर सबको चौंका दिया है। 15 अक्टूबर की शाम चंदनक्यारी से भाजपा विधायक अमर कुमार बाउरी को प्रदेश भाजपा विधायक दल का नेता बनाए जाने पर अभी मंथन चल ही रहा था कि 18 अक्टूबर को रघुवर दास को ओडिशा का राज्यपाल मनोनीत कर दिया है। पार्टी के इस फैसले से एक खेमे में खुशी तो दूसरे में गम है।

झारखंड में भाजपा के पास नेताओं और कार्यकर्ताओं की बड़ी संख्या है लेकिन प्रदेश स्तर के चेहरे सिर्फ तीन (बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास) हैं। चुनाव से पहले जब भाजपा को रघुवर के दांव-पेंच की जरूरत है, ऐसे वक्त में उन्हें झारखंड से विदा करने का केंद्रीय नेतृत्व का फैसला बहुत बड़ा कदम है। हालांकि, 2019 का चुनाव भाजपा ने रघुवर के नेतृत्व में ही लड़ा था और सत्ता से बाहर हो गई थी। अब बाबूलाल मरांडी राज्य में भाजपा के सर्वमान्य नेता नजर आ रहे हैं। क्योंकि, अर्जुन मुंडा भी केंद्र में मंत्री हैं और रघुवर को राजभवन भेज दिया गया है।

भाजपा की दूरदर्शी राजनीति का परिणाम है कि पार्टी ने राज्यपाल बनाकर रघुवर दास को वफादारी का इनाम दिया है। क्योंकि, रघुवर दास 68 साल के हो गये हैं। उनको लेकर लंबी प्लानिंग नहीं की जा सकती है। पिछले चुनाव के बाद ही पार्टी को यह बात समझ आ गई थी। दूसरा बड़ा संकेत यह है कि पार्टी ने बाबूलाल को फ्री हैंड कर दिया है। अब वह कोई भी बड़ा फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होंगे। क्योंकि, अर्जुन मुंडा पहले ही केंद्र की राजनीति में शिफ्ट हो चुके हैं। पार्टी के इस फैसले से गुटबाजी पर विराम लग गया है। अब बाबूलाल मरांडी वर्किंग कमेटी का गठन स्वतंत्र रूप से कर पाएंगे।

सबसे खास बात है कि पार्टी ने बाबूलाल मरांडी के जरिए ही अमर कुमार बाउरी को विधायक दल का नेता चुने जाने की घोषणा करवाई। रघुवर दास की वजह से आदिवासी सेंटिमेंट प्रभावित हो रहा था। इसका असर छत्तीसगढ़ चुनाव पर भी पड़ रहा था। साथ ही बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास और अर्जुन मुंडा की तिकड़ी में मेल नहीं खा रहा था। इसमें सबसे बड़ा रोड़ा रघुवर दास थे। हेमंत सरकार आए दिन आदिवासियों के हित में नई योजना ला रही है।इसको चेक एंड बैलेंस करने के लिए बाबूलाल मरांडी से अच्छा विकल्प कोई नहीं है।

जहां तक अमर कुमार बाउरी को बड़ी जिम्मेदारी देने की बात है तो इसका सबसे बड़ा फैक्टर है, उनका दलित समाज से आना। वह एक अच्छे वक्ता भी है। वह भविष्य के मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदार भी साबित हो सकते हैं। लिहाजा, भाजपा दो स्तर पर राजनीति कर रही है। साथ ही जेपी पटेल को सचेतक बनाकर कुर्मी वोट साधने की कोशिश की गई है। हालांकि, वह कोई बड़े फैक्टर नहीं हैं। सच यह है कि कुर्मी समाज के हिन्दुवादी विचारधारा के लोग भाजपा के साथ है। इसकी संख्या काफी कम है। इस वोट बैंक को आजसू के जरिए साधने की कोशिश होगी। भाजपा का पूरा फोकस 2024 के लोकसभा, राज्यसभा की दो सीटें और विधानसभा के चुनाव पर है।

भाजपा के एक नेता ने बताया कि 2019 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा की हार और कोल्हान प्रमंडल में भाजपा का सूपड़ा साफ होने के लिए रघुवर दास को जिम्मेवार माना जा रहा था। चुनाव के बाद कोल्हान में तीन गुटों में बंटे भाजपा का अंदरूनी कलह सतह पर आ चुका था। चुनाव हारने के बाद भी रघुवर दास जमशेदपुर में अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए हाथ-पैर मार रहे थे।

उधर, सरयू राय अंदर ही अंदर संघ और भाजपा के कार्यकर्ताओं के बीच अपनी पैठ बना रहे थे। कई ऐसे मौके आये जब रघुवर भाजपा कार्यकर्ताओं से दूर होते दिखे और सरयू ने कार्यकर्ताओं के दुख-सुख में शामिल होकर भाजपा कार्यकर्ताओं के एक बड़े वर्ग के बीच अपना प्रभाव बना लिया। इस दौरान सरयू गुट के भाजपा कार्यकर्ताओं ने प्रदेश और केंद्रीय नेतृत्व से कई बार रघुवर के खिलाफ शिकायत भी की। पार्टी में सरयू की लोकप्रियता और रघुवर के खिलाफ बढ़ते आक्रोश को देखते हुए शीर्ष नेतृत्व ने रघुवर को ओडिशा भेजकर डैमेज कंट्रोल करने का फैसला लिया है। फिलहाल, पार्टी की नजर लोकसभा चुनाव पर है।

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