झारखंड विधानसभा की दो चरणों में हुई नियुक्तियों में बड़े पैमाने पर फर्जीवाड़ा हुआ है। इस बात की तस्दीक जांच के लिए बनायी गयी जस्टिस विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट से हुई है। इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाली गड़बड़ियों का जिक्र किया गया है। इसमें नियमों को तो ताक पर रखा ही गया साथ ही पैरवी और पक्षपात भी की गयी। जिससे योग्य अभ्यर्थी नौकरी पाने से वंचित रह गये। वहीं विधायकों के कुछ चहेतों को बिना योग्यता के भी नौकरी मिल गयी। अब इन सभी बिंदुओं पर जांच आगे बढ़ेगी। कुछ दिनों पहले इस मामले में हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार से जांच आयोग की रिपोर्ट तलब की थी। तब झारखंड सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि उसके पास नियुक्ति घोटाले से संबंधित कोई रिपोर्ट है ही नहीं। सरकार ने कहा था कि रिपोर्ट की समीक्षा के लिए एक और आयोग, जस्टिस मुखोपाध्याय आयोग, का गठन किया गया है। सरकार की ओऱ से इस आयोग को रिपोर्ट सौंप दी गयी है।
इस प्रकार चहेतों को दी गयी नौकरी
विक्रमादित्य आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक अभ्यर्थी को कांग्रेस के तत्कालीन विधायक नियेल तिर्की की लिखित पैरवी पर नौकरी दे दी गयी। जबकि विधायक को ऐसा कोई पत्र लिखने का वैधानिक अधिकार नहीं है। बता दें कि नियेल तिर्की का देहांत हो चुका है। वहीं आयोग ने बताया है नियुक्ति के लिए कंप्यूटर का विषय अनिवार्य किया गया था। लेकिन कई लोगों को बिना कंप्यूटर की परीक्षा लिये ही नौकरी दे दी गयी। कंप्यूटर के बदले उनसे दूसरे विषय की परीक्षा ली गयी। आयोग की रपट में कहा गया है कि मार्क्स शीट में व्हाइटनर का भी इस्तेमाल किया गया है। इससे साबित होता है कि अंक देने में पक्षपात किया गया।
दो चरण में हुई बहालियां
गौरतलब है कि विधानसभा में ये बहालियां दो चरण में हुईं। दोनों चरण में फर्जीवाड़ा किया गया। पहले चरण में 2000-2004 के बीच बहालियां हुईं। उस समय विधानसभा के अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी थे। उनके कार्यकाल में 150 पदों पर बहालियां हुईं। इसके बाद 2006-2009 के बीच विधानसभा में बहाली हुई। इस समय आलमगीर आलम विधानसभा के स्पीकर थे औऱ 374 पदों पर बहाली हुई। इन दोनों चरणों में हुई अधिकतर नियुक्तियों में गड़बड़ी की शिकायत मिली। जिसकी जांच आयोग कर रहा है।