-सुरेश हिन्दुस्थानी
दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस को सत्ता मिल गई। इससे निश्चित ही कांग्रेस को डूबते को तिनके का सहारा मिल गया है। हालांकि कर्नाटक में सत्ता के शिखर पर पहुंचने के लिए चार दिन तक चले सत्ता के संग्राम में बाजी पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के हाथ लगी है। राजनीतिक दृष्टि से अध्ययन किया जाए तो यही कहा जाएगा कि कर्नाटक में कांग्रेस की विजय अप्रत्याशित नहीं है, क्योंकि यह कर्नाटक का लंबे समय से राजनीतिक इतिहास रहा है कि वहां कोई भी सरकार पुन: पदासीन नहीं हुई है, इसलिए कांग्रेस की इस जीत को परंपरावादी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं कही जाएगी। इसके बाद भी पूरे देश में सिमटती जा रही कांग्रेस के नेताओं में उत्साह का संचार पैदा हुआ है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस की इस जीत को इस रूप में भी प्रस्तुत करने लगे हैं कि दक्षिण में कांग्रेस ने भाजपा के बढ़ते कदमों को रोक दिया है। यह कितना सत्य है, यह तो कहा नहीं जा सकता, लेकिन ऐसा लगता है कि कांग्रेस को शायद इस बात का बहुत बड़ा भ्रम हो गया है कि वह अपराजेय बनती जा रही है। हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने जिस प्रकार से भारत का भ्रमण करके यात्रा निकाली उसका कार्यकर्ताओं में अच्छा संदेश गया। लेकिन उसने भाजपा को रोक दिया है, यह कहना इसलिए भी उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उसी समय उत्तर प्रदेश में स्थानीय निकाय के चुनाव हुए, जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने महापौर की सभी सीटों पर कब्जा किया। इसलिए कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के चुनाव को राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से देखा जाना अपने आपको भुलावे में रखने के समान ही माना जाएगा।
हम जानते हैं कि हर चुनाव के बाद ईवीएम पर सवाल उठाए जाते हैं। अगर भाजपा की विजय हो जाती है तो ईवीएम को चुनाव से हटाने की भी मांग उठने लगती। लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस के जीतने के बाद ईवीएम पर किसी भी प्रकार की आवाज नहीं आ रही है। सबके मुंह पर टेप लग गया है। लंबे समय से विपक्षी दल आरोप लगाते रहे हैं कि भाजपा ईवीएम के सहारे ही जीतती रही है। हम जानते हैं कि विपक्ष को केवल भाजपा की जीत से परहेज है, वे भाजपा की जीत को पचा नहीं पाते, जबकि दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी को छप्पर फाड़ समर्थन मिला था। इसके बाद भी यह नहीं कहा जा सकता कि वहां भाजपा और कांग्रेस का जनाधार समाप्त हो गया है।
हमें स्मरण होगा कि सन 2014 के लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद विपक्षी दलों के अधिकतर नेताओं ने एक स्वर में ईवीएम पर सवाल खड़े किए थे। तब इन सवालों का जवाब देने के लिए चुनाव आयोग ने सारे राजनीतिक दलों को बुलाया था कि ईवीएम को कोई हैक करके दिखाए। उस समय ज्यादा विरोध करने वाले कोई भी राजनेता चुनाव आयोग के बुलावे पर नहीं पहुंचे। इसलिए अब कर्नाटक में कांग्रेस को मिली विजय के बाद ईवीएम पर किसी भी प्रकार के सवाल नहीं उठ रहे। क्योंकि सभी जानते हैं कि इन सवालों का कोई पुष्ट आधार नहीं है।
जहां तक उत्तरप्रदेश के स्थानीय निकाय चुनाव में भाजपा की विजय की बात है तो यह सभी स्वीकार करने लगे हैं कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्य करने का तरीका अलग है, वे बुरे को बुरा कहने से नहीं चूकते। उत्तर प्रदेश की जनता को योगी का यही अंदाज पसंद आ रहा है। योगी आदित्यनाथ ने कई मिथकों के भ्रम को तोड़ा है, क्योंकि उनको अपने कार्य पर भरोसा है। कर्नाटक में जहां कांग्रेस की सरकार बन रही है तो दूसरी ओर राजस्थान में कांग्रेस के नेताओं की सरकार से ठन रही है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मौनी बाबा की भूमिका में आकर कानों में रुई डालकर बैठ गए हैं। कांग्रेस के युवा नेता सचिन पायलट उनका मौन तोड़ने के लिए गुर्रा रहे हैं। सचिन पायलट का यह कदम राजस्थान में कांग्रेस के भविष्य के लिए खतरे की घंटी की आवाज है। सचिन पायलट ने पदयात्रा करके बिगुल बजा दिया है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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