परवेज़ कुरैशी

रांची। रांची से क़रीब 20 किलोमीटर दूर ओरमांझी प्रखंड में बसे एक छोटे से गांव इरबा में अब्दुर रज़्ज़ाक़ अंसारी का 24 जनवरी, 1917 को जन्म हुआ था। आज उनकी 108 वी जयंती है। एक गरीब परिवार में जन्म लेने वाला बालक एक समय में इतना प्रसिद्ध होगें ये कल्पना किसी ने नहीं की थी। हलांकि 14 मार्च, 1992 में उनका निधन हो गया। बचपन से पढने का जुनून था घर की हालत अच्छी नहीं थी एक दिन खान बहादुर हबीबुर रहमान के खोले गए एक स्कूल के गेट पर रोज की तरह उस दिन भी खड़े थे,तभी हेडमास्टर ने बुलाया और पूछ लिया कि पढना चाहते हो और यहीं से शुरू हुआ पढने का सिलसिला।
अब्दुर रज़्ज़ाक़ अंसारी 1946 से राजनीति में सक्रिय रहे। मुस्लिम लीग और उसकी टू नेशन थ्योरी के ख़िलाफ़ रहे। उनके प्रयास से 1946 में छोटानागपुर डिविज़न की पांचों सीटें कांग्रेस जीत गई। सरदार पटेल ने उन्हें दिल्ली बुलाये। देश की आज़ादी के बाद 1948 में प्राथमिक बुनकर सहयोग समिति की बुनियाद डाली और धीरे-धीरे सहकारिता आंदोलन से बुनकरों को जोड़ते चले गये। 1978 में ‘दि छोटानागपुर रिजनल हैण्डलूम विवर्स को-ऑपरेटिव यूनियन लिमिटेड’ की स्थापना कर हस्तकरघा उद्योग से बुनकरों को जोड़ा। बताया जाता है कि अपने गाँव में लगभग 17 स्कूल खोले। 1938 में उन्होंने जो मिडल स्कूल खोला था, वह आज भी उनकी याद को ज़िन्दा रखे हुए है। इसी कैम्पस में अब्दुर रज़्ज़ाक़ अंसारी हाई स्कूल भी मौजूद है।
अब्दुर रज़्ज़ाक़ अंसारी 1964 में बिहार विधान परिषद के सदस्य चुने गए, उसके बाद बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. जगन्नाथ मिश्रा सरकार में 1989 में विधान परिषद सह हस्तकरघा, रेशम और पर्यटन विभाग में कैबिनेट मंत्री का पद भी दिया। इतना ही नहीं, इस छोटे से इलाक़े में मेदांता का हॉस्पीटल भी है। साथ ही यहां अस्कलेपियस सेंटर फॉर मेडिकल साइंस एवं 150 बेड का अस्कलेपियस अस्पताल और फ्लोरेंस नर्सिंग कॉलेज भी है। एक छोटे से मॉल के साथ शाईन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साईंस, दि छोटानागपुर रिजनल हैण्डलूम विवर्स को-ऑपरेटिव यूनियन लिमिटेड और सिल्क पार्क भी है। अब्दुर रज़्ज़ाक़ अंसारी का सबसे अहम योगदान अपने इलाक़े में युवतियों की शिक्षा को लेकर रहा। अपनी पत्नी बीबी नफ़ीरून निसा को भी पढ़ाया बाद में स्कूल में बतौर टीचर बहाल भी हुईं जहां से हेडमिस्ट्रेस होकर सेवानिवृत्त हुईं। आज अब्दुर रज़्ज़ाक़ को गरबा से लेकर दिल्ली तक सभी जानते हैं। ऐसे शख्सियत को मरणोपरांत भारत रत्न या फिर पद्मभूषण तो जरूर मिलना चाहिए था।

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