
ऑटो चालक न तो युनिफोर्म पहनते हैं न ही इनके ऑटो पे युनिक नंबर दर्ज है, दहीने तरफ से उतर चढ़ जारी है…
परवेज कुरैशी
रांची। हिंदपीढ़ी थाना क्षेत्र के सेंट्रल स्ट्रीट के रहने वाली दो सगी बहनें लोअर बाजार थाना क्षेत्र के कांटा टोली स्थित मंगल टावर के पास से अचानक लापता हो गई। इस मामले में थाना में मामला दर्ज कराया गया है और इसी के साथ पुलिस छानबीन में जुट गई है । जो आवेदक हैं अल्तमस जहां ने आवेदन में कहा है कि उसकी दोनों बहनें रहनुमा और अमरीना आधार कार्ड अपडेट कराने के लिए दोपहर करीब 12:30 बजे घर से निकलकर कांटाटोली स्थित मंगल टावर गई थीं। दोनों वहां पहुंचीं या नहीं, इसकी जानकारी नहीं है। लेकिन अचानक दोपहर लगभग 1:20 बजे पिता के मोबाइल पर एक बहन ने रोते हुए फोन किया। कहने लगी कि ऑटो रिक्शा वाला फोन व बैग छीन रहा है। इसके बाद तुरंत मोबाइल बंद हो गया। काफी प्रयास के बाद भी दुबारा फोन नहीं लगा। इसके बाद दोनों बहनों की खोजबीन शुरू हो गई। इस घटना के बाद पूरा हिंदपीढ़ी में हडकंप मच हुआ है और पुलिस के हाथ अब तक खाली है। परिजन परेशान है और मुहल्ला में हर तरह की कयास लगाये जा रहे हैं। अब ये अपहरण है या कुछ और पकड़े जाने के बाद ही सच्चाई सामने आयेगी। फिलहाल सिटी एसपी राजकुमार मेहता ने टीम घठित कर दिये हैं और सभी ऑटो चालकों से पूछताछ शुरू कर दिया गया है। वहीं मोबाइल का आखिरी लोकेशन ओरमांझी क्षेत्र का बताया जा रहा है। साथ ही यह भी देखने वाली बात है कि 12: 30 से 1:20 जो समय का अंतर है इतने कम समय में हिंदपीढ़ी से कांटा टोली मंगल टावर आना आधार कार्ड अपडेट कराने यह छानबीन के बाद पता चलेगा कि इतना जल्दी भीड़ भाड़ वाले इलाके से कम समय में कैसे पहुंची। वे कांटा टोली क्षेत्र से फोन की या फिर सेंट जेवियर्स के पास ऑटो स्टेंड से या फिर कहीं और दूसरे जगह से यह सच्चाई ऑटो चालक के पकड़े जाने के बाद ही पता चलेगा।
यदि ऑटो चालक ने अपहरण किया तो पुलिस की लापरवाही:
परिजनों के अनुसार की ऑटो चालक के द्वारा उसे अपराह्न किया गया है, क्योंकि उसकी बहन ने फोन से यही बताया था कि ऑटो चालक उसे मोबाइल और पर्स छीन रहा है,इसमें कितनी सच्चाई है ये पकड़े जाने के बाद ही कहा जा सकता है। यदि अगर पुलिस ऐसे ऑटो चालक की गिरफ्तारी करती है और दोनों लड़कियां सकुशल बरामद हो जाती है तो पुलिस की सफलता भले कहे जाएगी, लेकिन सवाल यह उठता है कि आज से नहीं जब ग्रामीण एसपी के पद पर नौशाद आलम थे, तभी से एक मुहिम चलाई गई थी कि रांची शहर के और इसके आसपास जितने भी ऑटो चालक हैं वे सब यूनिफॉर्म पहनेंगे, उनके ऑटो के दाहिने तरफ उतर चढ़ नहीं होगा, राॅड लगाने थे, सीट के सामनें और पीछे स्पेशल नंबर लिखना था , जैसे कोई सवारी ऑटो में बैठता है तो उस नंबर से उसकी पहचान होगी कि किस नंबर के ऑटो पर वह बैठे हैं, इसके अलावा तत्कालीन डीआईजी अनूप बिरथरे के नेतृत्व में भी सभी ऑटो में क्यूआर कोड चिपकाया गया था, कि किसी भी परिस्थिति में क्यूआर कोड को स्कैन कर सूचना दिया जा सकता है। लेकिन जब आप सर्वे करेंगे कांटा टोली चौक, सेंट जेवियर्स कॉलेज, लालपुर चौक, कचहरी चौक, रातू रोड चौक, कोकर चौक, बहु बाजार और इसके आसपास के कई ऑटो स्टैंड है जहां पर आप जाएंगे तो देखेंगे कि पालन नहीं किया गया है। इतना ही नहीं जो यातायात पुलिस है वह बिना परमिट वाले ऑटो को पकड़ते हैं चलन तो काटता हैं, पैसे जुर्माना करता हैं, लेकिन इन बातों पर कभी ध्यान नहीं देते हैं कि ऑटो चालक यूनिफॉर्म पहने हुए हैं कि नहीं, ऑटो में क्यूआर कोड लगाने बोला गया था तो लगाया कि नहीं, आखिर सभी ऑटो को पहचान के लिए जो नंबर देना था वह नंबर को लिखा क्यों नहीं गया। इन सब के अलावा कहीं ना कहीं जो पेट्रोल डीजल ऑटो संघ का जो यूनियन है और इसके जो नेता गण हैं, वे भी कहीं ना कहीं नियम को सफलता पूर्वक पालन कराने में पुलिस की मदद नहीं करते हैं । नतीजा यह होता है कि आप शहर में कहीं भी चले जाए, बेतरतीब तरीके से सड़क पर ऑटो लगा हुआ मिलेगा, जाम की समस्या पैदा होती है, आने जाने वाले लोगों को परेशानियां होती है । इन सब से ना तो यातायात पुलिस , ना यातायात एसपी को फर्क पड़ता है, ना ही आसपास के संबंधित थाना इस पर गंभीर होते हैं। ना ही ऑटो चालक और इसके यूनियन के जो नेता हैं इन्हें कोई फर्क पड़ता है । जब कोई समस्या होती है, जब कोई अपराधिक घटना होती है, तब पुलिस से लेकर हर कोई एक्टिव हो जाते हैं ।
पुलिस को किस्मत भरोसे मिलती है सफलता:
रांची शहर और इसके आसपास में कई अपराधिक घटनाएं हो रही है, हाल में पंडरा ओपी और रातू क्षेत्र में लूट की घटना हुई जिसमें से पंडरा ओपी मामले में पुलिस को सफलता तो मिली, लेकिन जो दूसरी लूट की घटना हुई उसमें पुलिस के हाथ अब तक खाली है। इसी तरह के चोरी, हत्या , छिनताई, लूट जैसे कई मामले थाने में दर्ज तो होती है, लेकिन इस पर पुलिस गंभीरता पूर्वक कितना काम करती है यह सब को पता है। 10 घटना में से पुलिस को एक से दो में ही मामले में सफलता मिल पाती है । जिसमें 8 से 9 ऐसे मामले हैं जिस पर पुलिस की कार्रवाई धीमी गति से चल रही होती है। आज कल की कुछ घटनाओं का उपभेदन पुलिस को किस्मत भरोसे सफलता मिल रही है।
इंफोर्मर भी सटीक खबर नहीं दे रहा है:
इतना ही नहीं पुलिस अपना इनफार्मर रखते हैं वे भी पुलिस के संपर्क में तो है लेकिन वे आपराधिक घटनाओं को कम करने के बजाय खुद भी बदमाशों के साथ मिलकर घटना को बढ़ावा देने में लगा रहता है। इतना ही नहीं ऐसे भी इनफार्मे हैं जो बदमाशों को हथियार या फिर चोरी करने का तरकीब बताता है और उसकी मदद भी करता है और फिर इसकी सूचना पुलिस को दे देता है, पुलिस उसे हिरासत में लेती है और फिर वही इंफार्मर बदमाश के परिजन से पैसा लेकर थाना से समन्वय बनाकर मामला को थाना से ही सलटा देता है। वरीय पुलिस को अगर इसकी सूचना मिलती है और वे थानेदार , सब इंस्पेक्टर, से पूछते भी हैं तो उसे यह बता दिया जाता है सर पूछताछ के लिए लाया गया था । ऐसे कई मामले हैं जिस पर पुलिस गंभीरता पूर्वक काम नहीं करती है, हालांकि ऊपर के अधिकारी चाहते हैं कि थाना स्तर पर अपराध नियंत्रण में रहे, लेकिन जब आप थाना क्षेत्र में आएंगे और देखेंगे कि थाना के अंतर्गत जो सिपाही , इंस्पेक्टर, मुंशी हैं वे किस तरह से कम कर रहे हैं, उनके काम करने की क्या तरीके हैं, इस पर भी निगरानी रखने की जरूरत है। इतना ही नहीं थाने में पदस्थापित पुलिस कर्मियों पर डीजीपी ने सीआईडी से निगरानी रखने की बात कही है, जबकि मोबाइल की भी जांच होनी चाहिए, तब पता चलेगा कि उनके संपर्क कैसे कैसे मठाधीश लोगों से हैं। साथ ही ऑटो चालक के जो यूनियन के नेता होते हैं इन पर भी पुलिस को गंभीरता पूर्वक कड़ाई के साथ काम करना चाहिए , ताकि हर तरह के अपराधिक घटनाओं को रोका जा सके। सभी चौक चौराहा पर जो यातायात पुलिस है , उन्हें भी न सिर्फ हेलमेट और सीट बेल्ट देखना चाहिए , बल्कि इसके अलावे वाहन जांच बहुत जरूरी है वाहन के अंदर कोई अवैध सामग्री तो नहीं जा रहा है, तभी अपराध पर कंट्रोल किया जा सकेगा।
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