November 23, 2024

दिन-ब-दिन बदलती जीवन शैली की वजह से आज सभी आयु वर्ग के लोग कमोबेश तनाव झेल रहे हैं। तनाव झेल रहे लोग विभिन्न बीमारियों के शिकार तो होते ही हैं, साथ ही इसका एक गंभीर परिणाम आत्महत्या भी होता है। या होता जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में आत्महत्या का आंकड़ा इस कद्र बढ़ा है कि यह दुनियाभर के लिए अब चिंता का विषय बन चुका है। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लोगों का ध्यान इस ओर आकर्षित करने के लिए प्रत्येक साल 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस मनाने का फैसला लिया गया है। झारखंड के परिप्रेक्ष्य में बात करें तो स्थिति यहां भी कम डरावनी नहीं है। आधुनिक जीवन शैली की जद में राज्य में की जनता भी है। यही वजह है कि राज्य में तनाव और डिप्रेशन से एक बड़ी आबादी जूझ रही है। नतीजा है,  यहां सुसाइड करने वाले दोगुनी रफ्तार से बढ़े हैं। 

क्या कहते हैं आंकड़े

ताजा आंकड़े, जो कि एनसीआरबी की ओर से जारी किये गये हैं, बताते हैं कि  झारखंड में आत्महत्या करने की प्रवृति लगातार बढ़ रही है। ये लेखाजोखा बताता है कि सूबे में 2018 में 3.60, 2019 में 4.50, 2020 में 5.50, 2021 में 6.50 लोग हर दिन अपनी जान खुद ले ले रहे हैं। इसमें राज्य का युवा वर्ग सबसे आगे है। दूसरे नंबर पर परीक्षा में असफलता, पारिवारिक विवाद, शराब की लत और इसका अत्याधिक सेवन और मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोग हैं। मीडिया में छपी खबरों के मुताबिक 15 से 29 आयु वर्ग के युवा आत्महत्या करने में सबसे आगे हैं। आज का युवा वर्ग छोटी से छोटी बात के कारण भी डिप्रेशन में चला जाता है और फिर इलाज या सही काउंसेलिंग नहीं होने के कारण उनको आत्महत्या करना आसान लगने लगता है। इस बारे में मनोचिकित्सकों का मानना है कि आत्महत्या की प्रवृति को रोकने के लिए शिक्षण संस्थानों में जागरुकता फैलानी चाहिये। उनको इस बात की जानकारी देनी चाहिये के सुसाइड के बाद संबंधित परिवार को किस तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

मीडिया में छपी रपटों के आधार कहें तो डिप्रेशन के बाद जो अन्य प्रमुख स्थितियां आत्महत्या का कारण बनती हैं वे हैं-

1. लंबी अवधि तक मानसिक रोग की दवा न लेना। 
2. अपने प्राब्लम दूसरों न शेयर करना। 
3. मीण इलाकों में मानसिक रोगियों के लिए दवा नहीं उपलब्ध नहीं होना या भूल जाना 
4. छात्रों पर प्रतियोगी परीक्षाओं का दबाव 
5. बेहतर रिजल्ट के लिए छात्रों पर दबाव डालना 
6. अवसाद का सामना नहीं कर पाना। 

अब एक बार फिर से आंकड़ों की बात करे तो  2021 मार्च से जुलाई के बीच  1000 से अधिक लोगों ने अपनी जान दी। इसमें डिप्रेशन के अलावा आर्थिक तंगी भी बड़ी वजह रही। एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक रांची, खूंटी व रामगढ़ जिलों में 10 माह में 388 लोग सुसाइड कर चुके हैं। इन जिलों में भी सुसाइड के मामले में युवा वर्ग सबसे आगे रहा है। 

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