November 24, 2024

शारिब खान

केंद्र की सत्ता से भाजपा गठबंधन सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए पटना में हुए महागठबंधन की बैठक के बाद देश की राजनीति में अचानक उछाल आ गया. इस बैठक के बाद विपक्ष बाग-बाग है. बैठक में एकजुटता पर सहमति तो बनी लेकिन यह तय नहीं हुआ कि पीएम कौन बनेगा ? विपक्षी बैठक में आपसी मतभेदों को भुलाना, बीजेपी के खिलाफ लोकसभा सीटों पर साझा उम्मीदवार उतारना, पार्टियों के बीच समन्वय बनाने के लिए एक समूह बनाना, बीजेपी के ख़िलाफ़ एक नीति पर विचार करने जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई. अगली बैठक अगले महीने शिमला में होना तय हुआ. इस बैठक में बहुत सी बातें स्पष्ट होगी. कांग्रेस को छोड़कर महागठबंधन में शामिल अधिकांश क्षेत्रीय दल हैं. क्षेत्रीय दलों का अपने राज्य में मजबूत पकड़ है. ये दल अपने राज्य में कांग्रेस को बड़ा भाई मानने को कतई तैयार नहीं हैं. इसका उदाहरण तो झारखंड व बिहार ही है. क्षेत्रीय दल चाहते हैं कि कांग्रेस को उन्हीं 200 संसदीय सीटों पर फोकस करना चाहिए, जहां बीजेपी से उसका सीधा मुकाबला है.ऐसे भी कांग्रेस गुजरात, पंजाब, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, असम, दिल्ली समेत कई केंद्र शासित प्रदेशों सहित 20 राज्यों में अकेले चुनाव लड़ सकती है. इन राज्यों में 200 लोकसभा सीटें हैं. वहीं, यूपी, बिहार, बंगाल, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, महाराष्ट्र में गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतर सकती है. इस तरह से 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे से जो तस्वीर उभरेगी, उसके बाद 2024 के चुनाव का परिदृश्य साफ होगा. इधर विपक्ष की एकता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा सीटों का फॉर्मूला और उन पर फंसा पेंच है. आखिर कौन किसके लिए अपनी सीट छोड़ेगा और कौन कम सीटें लेने पर राजी होगा ? बता दें कि विपक्ष 450 सीटों पर एक उम्मीदवार लड़ाने पर सहमति बनाने में जुटा है. कई राज्यों में इसी बात को लेकर पेंच फंस सकता है और विपक्षी एकता को झटका लग सकता है. यहां यह दीगर है कि विपक्षी एकता का जो झंडा बुलंद किया जा रहा है, इसका सेंटर कांग्रेस है. पार्टी अभी से लेकर जनवरी-फरवरी 2024 तक देश के जीतने भी राज्यों में चुनाव है, वहां की स्थिति- परिस्थिति और जीत-हार देख कर ही कोई कदम उठाएगा. दूसरी तरफ बंगाल की सीएम सीएम ममता बनर्जी ने कुछ दिनों पहले एक फॉर्मूला दिया था. उन्होंने कहा कि हम उन राज्यों में कांग्रेस का समर्थन करेंगे जहां पर उसकी जड़ें मजबूत हैं. इसके बदले में कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों को उनके गढ़ में समर्थन देना चाहिए.
ममता बनर्जी के इस फॉर्मूले से कांग्रेस को 227 से ज्यादा सीटें नहीं मिलेंगी. दूसरी बात यह कि इस फॉर्मूले के हिसाब से पश्चिम बंगाल, यूपी और बिहार में कांग्रेस हाशिए पर हो जाएगा. ऐसी स्थिति में विपक्षी एकता के एवज में कांग्रेस ऐसा स्वीकार करेगी ? फिलहाल तो ऐसा नहीं लगता. पार्टी क्षेत्रीय दलों का ज्यादा पिछलग्गू बनना अब नहीं चाहती. बैठक में जो 15 दल शामिल हुए उनका एजेंडा भी अलग-अलग है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल अभी अध्यादेश को लेकर पीड़ित हैं. पार्टी इस शर्त पर अडिग है कि कांग्रेस दिल्ली अध्यादेश के विरुद्ध समर्थन की घोषणा नहीं करेगी तो इसमें शामिल होना कठिन है.यही कारण रहा कि बैठक से नाराज होकर केजरीवाल चुपचाप निकल गए. बाद में पार्टी ने बयान जारी कर कहा कि आप के लिए समान विचारधारा वाले दलों की भविष्य में होने वाली बैठकों में भाग लेना मुश्किल होगा, जिसमें कांग्रेस हिस्सा ले रही है.समाजवादी पार्टी का एजेंडा यूपी में गठबंधन का नेतृत्व है.टीएमसी का एजेंडा स्पष्ट है.भले ही पार्टी बैठक में लेफ्ट के साथ शामिल हुई लेकिन फिलहाल बंगाल में ये साथ संभव नहीं है. नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी जैसे दलों का एजेंडा जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 के साथ ही पुरानी स्थिति बहाल कराना है. एनसीपी का एजेंडा केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग है तो वहीं शिवसेना यूबीटी का एजेंडा फिलहाल अपना वजूद बचाए रखना है. इस तरह सबका अपना डफली और अपना अलग-अलग राग है. बैठक से तेलंगाना के सीएम केसीआर, ओडिशा सीएम नवीन पटनायक,आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी और जेडीएस नेता कुमारस्वामी दूर रहे. इन्होंने स्पष्ट रूप से बैठक में शामिल होने से इनकार कर दिया और इससे दूरी बना ली. ऐसी स्थिति में मिशन 2024 के लिए विपक्ष कितना एकजुट हो पाएगा. यह भविष्य के गर्भ में है.

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