रांची। झारखंड विधानसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियां तैयारियों में जुट गई है। इस बीच सबसे ज्यादा झटका वैसे नेताओं को लगी है जो यह सपने संजोये बैठे थे, की पार्टी में लंबे समय से काम कर रहे हैं तो उन्हें भी चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा, लेकिन जैसे ही 18 अक्टूबर को भाजपा 68 , आजसू 10, जदयू 2 और लोजपा एक सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा हुई तो कई ऐसे नेता, विधायक थे जो अपने विधानसभा क्षेत्र की सीटों से चुनाव लड़ने का मन बना रहे थे, उनके सपने चूर चूर हो गए। इन्हीं कर्मठ नेताओं में से एक हैं रिटायर आईपीएस राजीव रंजन सिंह हैं, जिन्होंने बीजेपी की सदस्यता ली, इस उम्मीद से की उन्हें जमशेदपुर पश्चिम सीट से भाजपा चुनाव लड़ायेगी । वे पार्टी के लिए तन, मन ,धन लगाकर काम करते रहे, जनता की सेवा कर रहे थे, उनकी जरूरत तो और उनकी समस्याओं के निदान के लिए अपना पूरा समय दे रहे थे, लेकिन जैसे ही सीट शेयरिंग में भाजपा और जेडीयू आजसू, लोजपा का गठबंधन होने से भाजपा ने जमशेदपुर पश्चिम सीट जेडीयू के खाते में डाल दी, तो फिर राजीव रंजन सिंह कहीं के नहीं रहे। वे मायूस हो गए हैं। उन्होंने कहा कि काफी समय से भाजपा में रहकर सेवा कर रहे थे ,इसी उम्मीद के साथ कि हमें भी मौका मिलेगा । क्योंकि जमशेदपुर पश्चिम सीट भाजपा की ही सीट थी। लेकिन सीट शेयरिंग में जेडीयू को दे दिया गया । जो एक कार्यकर्ता के लिए नुकसानदेह है। भाजपा को ऐसा नहीं करना चाहिए था। 2019 में भी इस तरह की गलती तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने भी किया था। उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं, नेताओं को दरकिनार कर दूसरे पार्टी या फिर दूसरे नेताओं को चुनाव का टिकट दे दिया था। जिसमें मनोज यादव ,कुणाल षारंगी, सुखदेव भगत जैसे कई नाम गिनाए जा सकते हैं । यही गलती वर्तमान में भी दोहराई जा रही है , जो स्वस्थ राजनीति के लिए अच्छी नहीं है। बता दें कि यही वजह है कि सीट शेयरिंग की घोषणा एक तरफ हुई तो दूसरी तरफ भाजपा से जमुआ विधायक केदार हाजरा और आजसू से चंदनक्यारी के पूर्व विधायक झामुमो का दामन थाम लिया।
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